इसे सरकारी अधिकारियों की सुस्ती कहें या लापरवाही – जो सही समय से उचित कार्रवाई न करने के चलते एक तरफ प्राधिकरण पर 30 हजार करोड़ रुपये की बकाया धनराशि दूसरी तरफ हजारों करोड़ रुपये के स्टाम्प और इतने सारे घर खरीदारों के घरों की रजिस्ट्री से मिलने वाला पंजीकरण शुल्क आज तक प्रदेश सरकार के राजस्व में नहीं जुड़ पाया। जिसके चलते प्रदेश सरकार को अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। जबकि यह आंकड़े सिर्फ एक गौतमबुद्धनगर जिले के हैं।
गौतमबुद्धनगर। जिले में इन दिनों घरों की रजिस्ट्री के मामले को लेकर घर खरीदारों का आंदोलन पूरे जोर-शोर से जारी है। हालांकि अब घरों की रजिस्ट्री को लेकर प्रशासन भी सख़्त रवैया अपना चुका है। कुछ दिनों पहले जिला प्रशासन द्वारा तीनों प्राधिकरण क्षेत्र के 88 बिल्डरों को नोटिस के जरिये चेतावनी दी गयी कि वे अपनी परियोजनाओं के 12,859 फ्लैट की रजिस्ट्री 15 दिन में कराएं अन्यथा भारतीय स्टांप और रेरा अधिनियम के प्रावधानों के तहत उन पर कार्रवाई की जाएगी। जिला प्रशासन के इस कदम से घर खरीदारों ने कुछ राहत की सांस तो ली लेकिन अभी भी उनका कहना है कि जब तक घरों की रजिस्ट्री का काम शुरू नहीं होता है, उनका आंदोलन यूं ही जारी रहेगा।
बीते एक दशक में ग्रुप हाउसिंग के बहुत सारे बिल्डरों ने अपनी परियोजनाओं के घर खरीदारों को समय से घर देने के वायदे तो किये, लेकिन पूरे करने में नाकाम रहे। इन बिल्डरों ने पैसे लेकर अपनी तिजोरियां तो खूब भरीं लेकिन आम लोगों को घर के नाम पर सिर्फ आश्वासन देते रहे। बिल्डरों द्वारा वायदाखिलाफी करने के चलते घर खरीदारों के ऊपर होम लोन के साथ-साथ बोझ तो वहीं दूसरी तरह घर के किराये का भी बोझ पड़ गया; लेकिन न तो बिल्डर और न ही सम्बंधित अधिकारियों ने घर खरीदारों के इस दर्द को समझने की कोशिश की। घर बना तो बिल्डरों के प्राधिकरण में बकाया भुगतान के चलते ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट न मिल पाने के कारण घरों की रजिस्ट्री रुक गयी। बिल्डरों ने घर खरीदारों से पूरे पैसे लेकर फ्लैट पर कब्जा तो दे दिया लेकिन न तो प्राधिकरण को ड्यूज़ का पेमेंट किया और न घरों की रजिस्ट्री को गंभीरता से लिया। तब से अब तक जिले में 50 से 60 हजार से भी अधिक घर खरीदार रजिस्ट्री की बात जोह रहे हैं।
बीते इन वर्षों में बिल्डरों की इस गैरकानूनी गतिविधि के चलते प्रदेश सरकार के रेवेन्यू में भी अरबों रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन इस बड़े नुकसान को लेकर सम्बंधित विभाग और उनके अधिकारियों के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।
मौजूदा समय में ग्रुप हाउसिंग के बिल्डरों पर नोएडा-ग्रेनो प्राधिकरण के करीब 30 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं, जिसके चलते घरों की रजिस्ट्री का काम भी अधूरा है। घर खरीदार आवाज़ उठाते रहे लेकिन किसी ने भी उनकी सुध नहीं ली। यदि समय पर बिल्डरों के खिलाफ सख़्ती से कार्रवाई की जाती तो समय से रजिस्ट्री होने के चलते प्रदेश सरकार के राजस्व में बड़ी संख्या में पंजीकरण शुल्क में इज़ाफ़ा होता। इसके अलावा समय से रजिस्ट्री के चलते निबंधन विभाग को भी हजारों करोड़ रुपये के स्टाम्प का लाभ पंहुचता।
लेकिन इन बिल्डरों पर न तो कभी कोई दबाव डाला गया और न ही कोई सख़्त कार्रवाई की गयी जिसके चलते प्रदेश सरकार के राजस्व में अरबों रुपये का नुकसान हुआ। इसे सरकारी अधिकारियों की सुस्ती कहें या लापरवाही या फिर भ्रष्टाचार – जो सही समय से उचित कार्रवाई न करने के चलते एक तरफ प्राधिकरण पर 30 हजार करोड़ रुपये की बकाया धनराशि दूसरी तरफ हजारों करोड़ रुपये के स्टाम्प और इतने सारे घर खरीदारों के घरों की रजिस्ट्री से मिलने वाला पंजीकरण शुल्क आज तक प्रदेश सरकार के राजस्व में नहीं जुड़ पाया। जिसके चलते प्रदेश सरकार को अरबों रुपये का नुकसान हुआ है। जबकि यह आंकड़े सिर्फ एक गौतमबुद्धनगर जिले के हैं।
घर खरीदारों का कहना है कि प्रदेश सरकार को इन बिल्डरों के अलावा सभी अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। क्योंकि इसका नुकसान घर खरीदारों को तो हुआ ही है, इसके साथ प्रदेश सरकार के राजस्व में भी बड़ा नुकसान हुआ है।