Uttar Pradesh: पत्रकार की संपत्ति पर जबरन कब्जे के मामले में पुलिस नहीं कर कोई कार्रवाई; पत्रकार का सामान फेंका जाता रहा और मदद मांगने पर पुलिस बोली कोर्ट जाइये

सुलतानपुर। दिल्ली के एक जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार व निजी न्यूज़ संस्था के संचालक विभोर श्रीवास्तव की उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में स्थित पैतृक संपत्ति पर कब्जे के मामले में जिला पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए हैं। बिना मामले को पूरी तरह से समझे, पुलिस ने मामले से अपना पल्ला झाड़ लिया है, जबकि पीड़ित पत्रकार कि संपत्ति पर जबरन कब्जा किये जाने से लेकर सामान बाहर फेंके जाने तक की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध है।

गौरतलब है कि पीड़ित पत्रकार नोएडा में रहता है व जिले में उसका पैतृक आवास है, जिसका अभी तक कोई भी वैधानिक बंटवारा नहीं हुआ है। पीड़ित पत्रकार ने 30 मई को नगर कोतवाली में अपनी शिकायत दर्ज कराई लेकिन एक हफ्ता बीत जाने के बाद भी अभी तक पुलिस ने इस मामले में को कार्रवाई नहीं की है। पीड़ित पत्रकार ने बताया कि पुलिस में शिकायत दर्ज होने के बावजूद भी अगले दिन 31 मई को कब्जेदारों ने उसका सारा सामान उसके कमरे से निकालकर बाहर फ़ेंक दिया। इस सम्बन्ध में पत्रकार ने मदद के लिए फ़ौरन चौकी इंचार्ज, नगर कोतवाल व 112 पर फोन किया लेकिन मदद के लिए पुलिस नहीं आयी। उलटा पुलिस द्वारा पत्रकार को कहा गया कि पुलिस इसमें कुछ नहीं कर सकती है, आप कोर्ट जाइये।

पीड़ित पत्रकार बीते एक हफ्ते से एसपी ऑफिस से लेकर कोतवाली व चौकी इंचार्ज के चक्कर काट रहा है लेकिन पुलिस न तो उसकी बात सुन रही है और न ही सबूत देखने की कोशिश करते हैं। पुलिस बिना मामले को जाने और मामले से पल्ला झाड़ने के लिए कह रही है कि मामले में पिताजी संपत्ति में हिस्सा नहीं दे रहे हैं जबकि उन्हें तो ये तक भी नहीं पता है कि संपत्ति में पीड़ित पत्रकार के पिता का कहीं नाम ही नहीं है और न ही अधिकार है। पुलिस को तो ठीक से मामला तक नहीं पता है। पुलिस इस मामले को बंटवारा का नाम देकर अपना पल्ला झाड़ रही है।

यदि किसी व्यक्ति के घर पर जबरन कब्जा करके उसे बेघर कर दिया जाए और उसका सारा सामान बाहर कर दिया जाए तो प्रथम दृष्टया तत्काल प्रभाव से वह व्यक्ति न्याय के लिए पुलिस के पास ही जाएगा। लेकिन इस मामले में पुलिस द्वारा दिए जा रहे जवाबों के अनुसार पुलिस ऐसे मामलों में कुछ भी नहीं कर सकती और पीड़ित व्यक्ति को अपने बीवी बच्चों को सड़क पर छोड़कर अगले कई वर्षों तक न्याय पाने के लिए न्यायलय के चक्कर लगाने चाहिए।

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